वाल्मीकि की प्रेरणा लेकर जाति-भेद भाव से ऊपर उठें

 

वाल्मीकि जयंती 2021 / 20 अक्टूबर / लेख

वाल्मीकि की प्रेरणा लेकर जाति-भेद भाव से ऊपर उठें

 फादर डॉ. एम. डी. थॉमस

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20 अक्टूबर 2021 को वाल्मीकि जयंती मनायी जा रही है। एक मान्यता के अनुसार, वाल्मीकि भृगु गोत्र में प्रचेता या सुमाली के बेटे थे। जहाँ तक वाल्मीकि के मूल नाम का सवाल है, किसी कहानी के मुताबिक रत्नाकर था, तो किसी कहानी के अनुसार लोहजंघ या अग्नि शर्मा। किसी परंपरा में वाल्मीकि ब्राह्मन कुल के थे और किसी में निचली जाति के। खैर, ऋषि व महा ऋषि, कवि व आदिकवि, संस्कृत साहित्य व काव्य का जन्मदाता, संत, विद्वान, आदि कतिपय रूपों में वाल्मीकि की अहम् ख्याति है।

वाल्मीकि जयंती मनाते हुए लोग वाल्मीकि मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। आप के जीवन की कहानियों पर बनी झाँकियों को लेकर जुलूस भी निकाला जाता है। लोग इस दिन मिठाई, फल और पकवान बाँटा भी करते हैं। भंडारा इस दिन का अहम् हिस्सा है। भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम ही क्या, आजकल इस दिन सर्व धर्म सम्मेलन भी आयोजित किया जाता है।

माना जाता है कि वाल्मीकि का पालन-पोषण जंगल में रहने वाली भील जाति में हुआ था। आप एक डाकू थे और राहगीरों को लूटकर आजीविका कमाता था। कहानी के अनुसार मुनि नारद को लूटने पर सवाल किया गया था कि वाल्मीकि के परिवार जन उनके गुनाह की सजा में शरीक होंगे क्या नहीं। परिवार जन के मना करने पर मुनि नारद की प्रेरणा से आपने बुरा काम छोड़ा। फिर, तप, ध्यान और स्वाध्याय के साथ-साथ संस्कृत भाषा भी सीखकर आप विद्वान और महर्षि बने।

वाल्मीकि के नाम से जाना जाने वाला समुदाय दक्षिण भारत में बोया या बेदर नायक जाति से रहा और वे शिकार किया करते थे और योद्धा हुआ करते थे। पिछड़ी जाति में इस समुदाय की गिनती रही। उत्तर भारत में वाल्मीकि समुदाय भंगी जाति का है और अनुसूचित जाति में गिनाया जाता है। वे सफाई करमी के रूप में घोर हिंसा, शोषण और उँच-नीच भाव के शिकार रहे। आज भी इस समुदाय की हालत बहुत सुधरी हो, ऐसा तो कतई नहीं है। इन्सान के लायक व्यवहार व सम्मान पाने की दिशा में इन भाई-बहनों की मंजिल अब कितना दूर है, इसका अंदाज़ा लगाना बहुत मुमकिन नहीं लगता है।

निचली जाति के संत माने जाने वाले वाल्मीकि ऋषि रहे, महा ऋषि भी। आप अपने आप में नैतिक मूल्यों का एक खज़ाना बना। आप आदि कवि, संस्कृत के पहले श्लोककर्ता भी बने। आपने ही भारत को ‘रामायण’ जैसा महा काव्य दिया, जो कि भारत के एक बड़े समुदाय द्वारा धर्मग्रंथ के रूप में माना जाता है। यह बात हकीकत में वाल्मीकि और उनके समुदाय के लिए गौरव की बात है। यह बात वल्मीकि समुदाय के लोगों को जायज इज़्ज़त दी जाये, इसके लिए सबसे बड़ी वजह भी है।  

एक दिन वाल्मीकि नदी के किनारे थे। वहाँ क्रौंच या सारस पक्षी के एक जोड़े को देखा। वे आपस में प्यार में लीन थे। इतने में एक बहेलिये ने तीर चलाकर उनमें से एक को मार डाला। नर पक्षी की मौत से तड़पती मादा पक्षी को देख वाल्मीकि का दिल दहक गया। वे इतने दर्द से भर गये कि सहज ही उनके मुँह से कविता फूटी। ‘मा निषाद प्रतिष्ठां...’। दर्द-भरी इस कविता का मतलब यह रहा, ‘हे दुष्ट, तुमने प्यार में लीन क्रौंच पक्षी को मार डाला है। जा, तुझे जीवन में कभी भी प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी। तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा’।

यह तो असल में लाजवाब है कि एक चिडिय़ा के लिए भी वाल्मीकि के दिल में इतनी तड़प रही। यही तो इन्सान और संत की असली पहचान है। साथ ही, आप की बात जितनी कविता थी, ठीक उतना ऋषि का शाप भी रहा। शाप इसलिए था कि बहेलिए ने प्यार-जैसी निजी पल में उस चिडिय़े को मारा, जो कि क्रूर हरकत है। ज़ाहिर है, वाल्मीकि का यह शाप समाज में निर्दयी और क्रूर होकर औरों से नीच किस्म का या गिरा हुआ व्यवहार जो भी करता है, उन सब पर लागू होता है। 

वाल्मीकि की यह उद्गार, बस, सबसे पहली कविता बनी। इसलिए वाल्मीकि ‘आदिकवि’ के रूप में मशहूर हैं। याने, आप पहली कविता का रचयिता हैं, वह भी संस्कृत में। संस्कृत श्लोक के जन्मदाता के रूप में भी आप जाने जाते हैं। ज़ाहिर तौर पर, कविता साहित्य की ऐसी विधा है जिसमें अपने दिल के भाव को बहुत असरदार तरीके से इज़हार करने की गुंजाइश है। कविता कवि को असल में अमर बनाती है। बतौर आदिकवि के वाल्मीकि मूल्यों की एक बेमिसाल परंपरा ही बने हुए हैं, यही आपकी वरीयता है। 

वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण ‘वाल्मीकि रामायण’ कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण धर्म ग्रंथ न होकर सिर्फ ‘महाकाव्य’ है। महाकाव्य के रूप में यह मूल्यों का एक बड़ा खज़ाना है। यह 24,000 श्लोकों की पोथी है। आपने इस पोथी में अनेक किरदारों का चित्रण किया है। इन्सानी जीवन की सच्चाई, मर्यादा व अनुशासन की सीख देना वाल्मीकि रामायण का मकसद है। साथ ही, मूल्यों को आधार मानकर जीवन बिताने की कला को पेश करने में वाल्मीकि बेहद अव्वल साबित हुए हैं।  

‘वाल्मीकि जयंती 2021’ महा ऋषि वाल्मीकि से प्रेरणा लने का ऐसा पुनीत मौका है कि हर इन्सान अपनी-अपनी जि़ंदगी में बुरे और हेय कर्मों से निज़ात पाये, अच्छे कामों में लग जाये और गरिमा के लायक इन्सान बने। साथ ही, हर एक जाति, काम, रंग, आदि को लेकर इंसान-इन्सान में फर्क करना छोडक़र हर इन्सान को इज़्ज़त देना सीखे। वाल्मीकि समुदाय के तमाम बहन व भाई जीवन में तरक्की व इज़्ज़त पायें। महाकाव्य ‘वाल्मीकि रामायण’ से मूल्यों को ग्रहण कर हर इन्सान जीवन की बेहतरी की दिशा में चलते जाये। यही लेखक की मंगल कामनाएँ हैं।

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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।

निम्नलिखित माध्यमों के द्वारा आप को देखा-सुना और आप से संपर्क किया जा सकता है। वेबसाइट: ‘www.mdthomas.in’ (p), ‘https://mdthomas.academia.edu’ (p), and ‘www.ihpsindia.org’ (o); ब्लॅग: https://drmdthomas.blogspot.com’ (p); सामाजिक माध्यम: ‘https://www.youtube.com/InstituteofHarmonyandPeaceStudies’ (o), ‘https://www.facebook.com/mdthomas53’ (p) and ‘https://twitter.com/mdthomas53’ (p); ईमेल: ‘mdthomas53@gmail.com’ (p)  और दूरभाष: 9810535378 (p).

 

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